समाज बंधुओं की तरक्क़ी, सामाजिक सुरक्षा और खारोल समाज संस्कृति की रक्षा के खातिर..........

समाज बंधुओं की तरक्क़ी, सामाजिक सुरक्षा और खारोल समाज संस्कृति की रक्षा के खातिर..........

समाजबन्धुओ " खारोल समाज" अन्य कई समाजो के मुकाबले मिलनसार,ईमानदार,होशियार,बुद्धिमान, मेहनती,स्वाभिमानी है फिर भी समाज दिन ब दिन पिछड़ता जा रहा है,अपनी पहचान को अपने गौरव को खोता जा रहा है.....क्यो??? क्योंकि एकता का अभाव है समाज मे एकता की कमी है ,एकता से बढ़कर कोई शक्ति नही है ।एकता ही समाज उत्थान का आधार है ।जो समाज संगठीत होगा,एकता के सूत्र मे बन्धा होगा उसकी प्रगति को कोई रोक नही सकता किन्तु जहाँ एकता नही हे वह समाज ना प्रगति कर सकता है,ना समृधि पा सकता है,ओर ना अपने सम्मान को,अपने गोरव को कायम रख सकता है। खारोल समाज इसका जीता जागता उदाहरण है।हम समाजबंधु एक साथ रहते तो है लेकिन क्या हम उन्नती प्रगति के लिए एक दूजे का साथ देते है ?नही ; तो सिर्फ एक साथ रहने का कोई मतलब नही । एक साथ इस शब्द का कोई अर्थ तभी है जब हम एक साथ रहे भी ओर एक-दूजे का साथ दे भी ।ऐसी एकता को ही सही मायने में "एकता"(unity) कहा जाता है।

समाज मे एकता को कायम रखने के लिए समाजशास्त्रियों ने 'संगठन' नामक एक व्यवस्था सुचित की ओर हर एक समाज ने इस व्यवस्था के महत्व को समझते हुए इसे अपनाया । खारोल समाज मे भी संगठन बने हुए है। समाज के संगठन का पहला काम होता है कि समाजबंधुओं में अपने धर्म या जाति के प्रति एक अस्मिता को, स्व-अस्मिता को गर्व की अनुभूति को जाग्रत रखे।अपनी संस्कृति को समाजबंधुओं के जीवनशैली का एक अंग बनाकर अपनी संस्कृति का संरक्षण- सवर्धन करे। समाज की एकता के लिए यही सबसे पहली जरूरत है ,पहली शर्त है।किसी मराठा को, राजपुत को, सिख को,जेन को देखिये उन्हें अपने मराठा, राजपूत, सिख, जेन होने पर गर्व होता है। अस्मिता ओर संस्कृति का यही मजबुत धागा समाज को एकता के सूत्र में बांधे रखता है ।क्या आज हम में अपने खारोल होने के प्रति वह अस्मिता, वह गर्व की अनुभूति जागृत है ? खारोल समाज संस्कृति के आन -बान - शान के लिए, सरक्षण-सवर्धन के लिए अपना सबकुछ दाव पर लगाने का जज्बा बचा है ? क्या समाज के युवाओं को अपने "खारोल" होने पर नाज होता है ? गर्व अनुभव होता है ?यदि नही तो यह बात पत्थर की लकीर है कि समाज मे,समाज के नाम पर एकता बन ही नही सकती ऐसी स्थिति में कोई नेतृत्व, कोई संगठन समाज मे एकता कायम नही कर सकता इसलिए हमें स्वयं समाज के लिए  जागृत होने पड़ेगा ।

आज हम समाजबंधुओं खासकर युवाओ से  'खारोल समाज संस्कृति' के बारे में उनकी जानकारी जानना चाहे तो वो कुछ बता नही पाते है । कई समाजबंधुओं से व्यक्तिगत बातचीत में जब हमने कहा कि चलो...... खारोल समाज संस्कृति/कल्चर के बारे में कोई ऐसी बात बताए जिसे की समाज के सभी लोग कहे कि हा, इस बात पर हम सभी एकमत है । ऐसा नही है कि "खारोल समाज" की कोई संस्कृति ही नही रही हो या जीवनशैली में,दिनचर्या में उनका समावेश ही नही रहा है । किसी नाम विशेष से कोई समाज होता है ,जैस कीे -जेन ,राजपूत, ब्राह्मण आदि ; तो उस समाज की अपनी संस्कृति भी होती है उसी तरह हमारी संस्कृति भी है नमक उत्पादन जब हमारे पूर्वज राजपूत से खारोल बने उस समय खारोल समाज के धार्मिक आध्यत्मिक सामाजिक प्रबंधन हेतु समाज गुरु भी बने थे ।समाज को दिशा देने का , मार्गदर्शन करने कार्य एक व्यवस्था के रूप में समाज गुरुओं को सोपा गया था ।तथ्य बताते है कि गुरुओं ने एक सुव्यवस्थित प्रणाली,एक व्यवस्था का निर्माण किया था जो खारोल समाज की उतपत्ति के बाद सुचारू रूप से चलता रहे  आज हम में से ज्यादातर समाजबंधुओं को हमारा इतिहास भी नही मालूम है 
दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि इसी कारण हम आज अलग अलग क्षेत्रो में अलग कामो की वजह से अलग अलग पहचाने जाते जैसे कि राजस्थान में नमक बनाने वाले मध्यप्रदेश में कच्चे मकान बनाने वाले आदि लेकिन बन्धुओं जहा तक मुझे जानकारी है खारोल समाज की उतपति खार यानी कि नमक बनाने की वजह से हुई तो हम सब खारोल हुए लेकिन आजकल देखने मे आता है कि लोग अपने आप को  खारोल कहने में हिचकिचाहते है सब अपने सरनेम लगाने लग गए या अपने आप को ठाकुर या राजपूत कहने लग गए है हम मानते है कि हमारे पूर्वज राजपूत होंगे लेकिन आज हम सिर्फ और सिर्फ खारोल, खारवाल है इसलिए मेरा तो आप सब से यही निवेदन है कि हम अपनी संस्कृति को नही खोने दे हमारी समाज बहुत छोटी समाज है मिलजुल के रहे आपस में प्यार और स्नेह का भाव रखे और कोई समाजबंधु आगे बढ़ रहा हो तो उसका सहयोग करे मिलजुल के रहे आपस मे एकता रखे समाज को आगे बढ़ाए अपने बच्चों को शिक्षित बनाये ओर समाज के प्रति भी जागृत करे 
कुछ गलत कहा हो तो क्षमा करें

धन्यवाद 
जय हो खारोल समाज की 
नवीन खारोल
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
अखिल भारतीय खारोल खारवाल महासभा